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गुड़िया

Paakhi
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हर तरफ से थी आई खुशियों भरी बधाई
पहनाकर अंगूठी साथ रहने की कसमे खाई
पिता ने जब वर के माथे पर तिलक लगाई
कुछ इस प्रकार संपन्न हुई गुड़िया की सगाई

शादी में अब बस कुछ ही समय बचा था
किसे पता था विधि ने कुछ और ही रचा था
पसंद करने लगा था वर राम गुड़िया को
और गुड़िया को भी वह कुछ ज़्यादा ही जँचा था


तय किया राम ने, गुड़िया आगे नही पढ़ेगी
उसके जैसे कामयाबी की सीढ़ियाँ नही चढ़ेगी
उसकी देहरी तक ही रहेगी, आगे नही बढ़ेगी
तिनका तिनका अपना जीवन, उसके अरमानो से गढ़ेगी


मान लिया था गुड़िया ने राम की ये चाह
उसको भी तो राम से करना था जो व्याह
पर टूट गया रिश्ता, अनगिनत माँगों की राह
दिल में दर्द उबल रहा, और लबों पर आह


सोच रही किस विषाक्त जलराशि में
घुल गयी उसके अरमानो की पुड़िया
कभी इस हाथ की, कभी उस हाथ की
बनी रह गयी वो केवल एक गुड़िया


टूटे हुए रिश्ते के व्रण से निजात पाने
गुड़िया आज गंगा में नहा आई है
बचपन से संभाल कर रखी हुई गुड़िया
गंगा के ही जल में बहा आई है


नही समझी कब गुडियों से खेलते हुए
वो सचमुच की गुड़िया थी बन गयी
चल पड़ी है आज एक नयी दिशा में
बीते हुए कल से जैसे उसकी ठन गयी

सुलोचना वर्मा

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